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अध्ययन लेख 25

जब चिंताओं से हों घिरे, यहोवा पर भरोसा रखें

जब चिंताओं से हों घिरे, यहोवा पर भरोसा रखें

“चिंताओं के बोझ से मन दब जाता है।”​—नीति. 12:25.

गीत 30 यहोवा, मेरा परमेश्‍वर, पिता और दोस्त

लेख की एक झलक *

1. हमें यीशु की चेतावनी पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

यीशु ने आखिरी दिनों के बारे में भविष्यवाणी करते वक्‍त अपने चेलों को खबरदार किया, “तुम खुद पर ध्यान दो कि . . . ज़िंदगी [या “रोज़ी-रोटी; रोज़मर्रा,” अ.बाइ. फु.] की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ।” (लूका 21:34) आज हमें भी इस चेतावनी पर ध्यान देना है। वह इसलिए कि हमें भी उन चिंताओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिनका बाकी लोग करते हैं।

2. हमारे भाई-बहनों को किस तरह की समस्याएँ आ घेरती हैं?

2 कभी-कभी हमें एक-साथ कई सारी समस्याएँ आ घेरती हैं, जिस वजह से हम तनाव में आ जाते हैं। कुछ उदाहरणों पर ध्यान दीजिए। जॉन * की पत्नी शादी के 19 साल बाद उसे छोड़कर चली गयी। वह भाई पहले से ही एक ऐसी बीमारी से जूझ रहा था, जिसमें शरीर के कुछ अंगों को लकवा मार जाता है, ऊपर से जब उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गयी, तो उसे बहुत धक्का लगा। फिर उसकी दो बेटियों ने यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया। एक और पति-पत्नी, बॉब और लिंडा पर ध्यान दीजिए। उन्हें दूसरी किस्म की मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा। पहले उन दोनों की नौकरी छूट गयी, फिर उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ा। यही नहीं, डॉक्टर ने लिंडा को बताया कि उसे दिल की ऐसी बीमारी है, जो जानलेवा साबित हो सकती है। कुछ समय बाद पता चला कि उसे भयंकर गठिया रोग (आर्थराइटिस) है।

3. फिलिप्पियों 4:6, 7 से हमें किस बात का भरोसा मिलता है?

3 हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि हमारा सृष्टिकर्ता और प्यारा पिता यहोवा अच्छी तरह समझता है कि तनाव की वजह से हम पर क्या बीतती है। इतना ही नहीं, इन परेशानियों का सामना करने के लिए वह हमारी मदद भी करना चाहता है। (फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए।) परमेश्‍वर के वचन में बताया गया है कि उसके सेवकों ने किन मुश्‍किलों का सामना किया। इसमें यह भी बताया गया है कि उन मुश्‍किलों के दौरान यहोवा ने कैसे उनकी मदद की। आइए कुछ सेवकों की मिसाल पर गौर करें।

एलियाह में “हमारे जैसी भावनाएँ थीं”

4. (क) एलियाह के सामने कौन-सी मुश्‍किलें आयीं? (ख) इस दौरान वह क्या साफ देख सका?

4 एलियाह ने मुश्‍किल दौर में यहोवा की सेवा की थी और उसे कई बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसराएल के इतिहास में राजा अहाब उन राजाओं में से एक था, जिन्होंने यहोवा से मुँह मोड़ लिया था। उसने इज़ेबेल से शादी की, जो बाल देवता की उपासना करती थी और एक दुष्ट औरत थी। उन दोनों ने इसराएल देश में हर जगह बाल की उपासना का बढ़ावा दिया और यहोवा के बहुत-से भविष्यवक्‍ताओं को मरवा डाला। मगर एलियाह बच गया। फिर देश में भारी अकाल पड़ा। ऐसे में एलियाह ने यहोवा पर भरोसा रखा और वह अकाल का सामना कर पाया। (1 राजा 17:2-4, 14-16) उसने तब भी यहोवा पर भरोसा रखा, जब उसने बाल के भविष्यवक्‍ताओं और पुजारियों को यह साबित करने की चुनौती दी कि कौन सच्चा परमेश्‍वर है। उसने इसराएलियों से मिन्‍नत की कि वे यहोवा की उपासना करें। (1 राजा 18:21-24, 36-38) एलियाह साफ देख सकता था कि यहोवा ने मुश्‍किल दौर में कई बार उसकी मदद और हिफाज़त की है।

यहोवा ने एक स्वर्गदूत भेजा, ताकि वह ताकत पाने में एलियाह की मदद करे (पैराग्राफ 5-6 देखें) *

5-6. (क) 1 राजा 19:1-4 के मुताबिक एलियाह ने कैसा महसूस किया? (ख) यहोवा ने किन तरीकों से दिखाया कि वह एलियाह से प्यार करता है?

5 1 राजा 19:1-4 पढ़िए। जब रानी इज़ेबेल ने एलियाह को जान से मारने की धमकी दी, तो वह बहुत डर गया और बेरशेबा के इलाके में भाग गया। वह इतना निराश हो गया कि “परमेश्‍वर से मौत” माँगने लगा। एलियाह ने ऐसा क्यों महसूस किया? क्योंकि वह भी हमारी तरह अपरिपूर्ण था और उसमें “हमारे जैसी भावनाएँ थीं।” (याकू. 5:17) शायद वह बहुत तनाव में था और शारीरिक रूप से पस्त हो चुका था। उसे लग रहा था कि उसने लोगों को यहोवा की उपासना करने का जो बढ़ावा दिया, उसका कोई फायदा नहीं, इसराएल देश के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है और यहोवा की सेवा करनेवालों में से वही अकेला रह गया है। (1 राजा 18:3, 4, 13; 19:10, 14) हमें शायद हैरानी हो कि इतना वफादार सेवक ऐसा कैसे सोच सकता था। लेकिन यहोवा एलियाह की भावनाएँ अच्छी तरह समझता था।

6 एलियाह ने जब खुलकर बताया कि वह कैसा महसूस कर रहा है, तो यहोवा ने उसे डाँटा-फटकारा नहीं, बल्कि अलग-अलग तरीकों से उसकी मदद की। उसने एलियाह के खाने-पीने का इंतज़ाम किया, ताकि उसे ताकत मिले। (1 राजा 19:5-7) कुछ समय बाद उसने एलियाह के सामने अपनी लाजवाब ताकत का प्रदर्शन किया और प्यार से उसकी गलत सोच सुधारी। फिर यहोवा ने उसे बताया कि पूरे इसराएल में अब भी 7,000 ऐसे लोग हैं, जिन्होंने बाल की उपासना नहीं की। (1 राजा 19:11-18) इस तरह यहोवा ने दिखाया कि वह एलियाह से कितना प्यार करता है।

यहोवा हमारी मदद किस तरह करेगा?

7. यहोवा ने जिस तरह एलियाह की मदद की, उससे हमें क्या पता चलता है?

7 क्या आप किसी मुश्‍किल हालात की वजह से बहुत तनाव में हैं? अगर हाँ, तो यकीन मानिए, जिस तरह यहोवा ने एलियाह की भावनाएँ समझीं, उसी तरह वह आपकी भावनाएँ भी समझता है। वह जानता है कि हम किन परेशानियों से गुज़र रहे हैं। उसे पता है कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। उसे यह भी मालूम है कि हम क्या सोच रहे हैं और कैसा महसूस कर रहे हैं। (भज. 103:14; 139:3, 4) अगर हम एलियाह की तरह यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह चिंताओं का सामना करने में हमारी भी मदद करेगा।​—भज. 55:22.

8. तनाव-भरे हालात का सामना करने में यहोवा कैसे आपकी मदद करेगा?

8 हो सकता है, तनाव की वजह से आपको लगे कि आपके हालात कभी नहीं सुधरेंगे और इसलिए आप निराश हो जाएँ। ऐसे में याद रखिए कि तनाव का सामना करने में यहोवा आपकी मदद करेगा। कैसे? वह आपको बढ़ावा देता है कि आप अपनी चिंताएँ उसे बताएँ। वह आपकी मदद की पुकार ज़रूर सुनेगा। (भज. 5:3; 1 पत. 5:7) उससे लगातार प्रार्थना कीजिए और उसे अपनी परेशानियाँ बताइए। माना कि वह आपसे सीधे-सीधे बात नहीं करेगा, जैसे उसने एलियाह से की थी, लेकिन वह अपने वचन बाइबल और अपने संगठन के ज़रिए आपसे बात करेगा। आप बाइबल में जो घटनाएँ पढ़ते हैं, उनसे आपको दिलासा मिल सकता है और एक उम्मीद मिल सकती है। यही नहीं, भाई-बहन भी आपका हौसला बढ़ा सकते हैं।​—रोमि. 15:4; इब्रा. 10:24, 25.

9. एक भरोसेमंद दोस्त कैसे हमारी मदद कर सकता है?

9 जब यहोवा ने एलियाह से कहा कि वह अपना कुछ काम एलीशा को सौंप दे, तो वह दरअसल एलियाह की मदद कर रहा था। वह कैसे? वह एलियाह को ऐसा दोस्त दे रहा था, जो निराशा के वक्‍त उसकी हिम्मत बँधा सकता था। उसी तरह अगर हम किसी भरोसेमंद दोस्त को अपने दिल का हाल बताएँ, तो हमारे मन का बोझ हलका हो सकता है। (2 राजा 2:2; नीति. 17:17) लेकिन अगर आपको लगता है कि ऐसा कोई नहीं है, जिसे आप अपनी परेशानी बता सकें, तो यहोवा से मदद माँगिए। उससे प्रार्थना कीजिए कि आपको ऐसा प्रौढ़ मसीही मिले, जो आपकी हिम्मत बँधा सके।

10. (क) एलियाह का अनुभव हमें क्या आशा देता है? (ख) यशायाह 40:28, 29 में लिखी बात से हमें क्यों हिम्मत मिल सकती है?

10 यहोवा की मदद से एलियाह मुश्‍किलों का सामना कर पाया और सालों तक वफादारी से उसकी सेवा करता रहा। एलियाह का अनुभव हमें एक आशा देता है। शायद कई बार हम ऐसे मुश्‍किल दौर से गुज़रें, जो हमें न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक तौर से भी पूरी तरह पस्त कर सकता है। लेकिन अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह हमें ताकत देगा ताकि हम उसकी सेवा करते रहें।​—यशायाह 40:28, 29 पढ़िए।

हन्‍ना, दाविद और भजन के एक लेखक ने यहोवा पर भरोसा रखा

11-13. प्राचीन समय में जब परमेश्‍वर के तीन सेवक चिंताओं से गुज़रे, तो उन पर क्या असर हुआ?

11 बाइबल के दूसरे किरदारों को भी तनाव से गुज़रना पड़ा। हन्‍ना की मिसाल लीजिए। उसे बाँझ होने का अपमान सहना पड़ा, ऊपर से उसकी सौतन दिन-रात उस पर ताने कसती रहती थी। (1 शमू. 1:2, 6) हन्‍ना चिंता के मारे इतना दुखी हो गयी थी कि वह रोती रहती थी और कुछ नहीं खाती थी।​—1 शमू. 1:7, 10.

12 कई बार राजा दाविद को भी चिंताओं ने आ घेरा। ज़रा सोचिए, उस वक्‍त उस पर क्या गुज़री होगी, जब उसकी गलतियों की वजह से उसका मन बार-बार उसे कचोट रहा था। (भज. 40:12) या उस वक्‍त उसके दिल पर क्या बीत रही होगी, जब उसके अज़ीज़ बेटे अबशालोम ने उससे बगावत की और फिर जब उसकी मौत हो गयी। (2 शमू. 15:13, 14; 18:33) या सोचिए कि जब उसके एक जिगरी दोस्त ने उससे विश्‍वासघात किया, तो उसे कैसा लगा होगा। (2 शमू. 16:23–17:2; भज. 55:12-14) दाविद के लिखे कई भजनों से पता चलता है कि वह बहुत निराश हो गया था। लेकिन उनसे यह भी पता चलता है कि उसे यहोवा पर पूरा भरोसा था कि वह उसे सँभाल लेगा।​—भज. 38:5-10; 94:17-19.

भजनों का एक लेखक किस वजह से फिर से खुशी-खुशी यहोवा की सेवा कर पाया? (पैराग्राफ 13-15 देखें) *

13 कुछ समय बाद भजनों का एक और लेखक दुष्ट लोगों को चैन से जीते देखकर उनसे ईर्ष्या करने लगा था। शायद वह लेखक लेवी आसाप का एक वंशज था और “परमेश्‍वर के शानदार भवन” में सेवा करता था। वह इतना निराश हो गया था कि उसकी खुशी छिन गयी और उसके पास जो कुछ था, उससे वह संतुष्ट नहीं रहा। यहाँ तक कि यहोवा की सेवा से मिलनेवाली आशीषों को वह कम आँकने लगा।​—भज. 73:2-5, 7, 12-14, 16, 17, 21.

14-15. यहोवा से मदद माँगने के बारे में हम बाइबल के तीन किरदारों से क्या सीखते हैं?

14 अभी हमने परमेश्‍वर के जिन तीन सेवकों का ज़िक्र किया, उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा और उससे मदद माँगी। उन्होंने अपनी परेशानियों के बारे में उससे गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की, उसे खुलकर बताया कि वे किस वजह से तनाव में हैं। इसके अलावा उन्होंने यहोवा के भवन में जाना और उसकी उपासना करना बंद नहीं किया।​—1 शमू. 1:9, 10; भज. 55:22; 73:17; 122:1.

15 यहोवा ने उनका दर्द समझा और प्यार से हरेक की मदद की। उसने हन्‍ना को मन की शांति दी। (1 शमू. 1:18) दाविद ने लिखा, “नेक जन पर बहुत-सी विपत्तियाँ तो आती हैं, मगर यहोवा उसे उन सबसे छुड़ाता है।” (भज. 34:19) भजनों के लेखक यानी आसाप के वंशज ने बाद में महसूस किया कि यहोवा ने “[उसका] दायाँ हाथ थाम लिया है” और वह प्यार से उसका मार्गदर्शन कर रहा है। फिर उसने अपने गीत में लिखा, “मेरे लिए परमेश्‍वर के करीब जाना भला है। मैंने सारे जहान के मालिक यहोवा की पनाह ली है।” (भज. 73:23, 24, 28) इन उदाहरणों से हम क्या सीखते हैं? कई बार हम समस्याओं के भँवर में फँस जाते हैं और इस वजह से हम बहुत परेशान हो जाते हैं। लेकिन हम इस भँवर से निकल सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि हम इस बात पर मनन करें कि यहोवा ने अपने दूसरे सेवकों की कैसे मदद की, प्रार्थना करके उससे मदद माँगें और वह हमसे जो करने को कहता है, वह करें।​—भज. 143:1, 4-8.

यहोवा पर भरोसा रखकर चिंताओं का सामना कीजिए

पहले एक बहन को किसी से मिलने का मन नहीं करता था, लेकिन जब उसने दूसरों की मदद की, तो उसे काफी फायदा हुआ (पैराग्राफ 16-17 देखें)

16-17. (क) हमें खुद को दूसरों से अलग क्यों नहीं करना चाहिए? (ख) हमें हिम्मत और ताकत कैसे मिल सकती है?

16 ये तीन उदाहरण हमें एक और अहम सीख देते हैं। वह यह कि हमें कभी-भी खुद को यहोवा और उसके लोगों से अलग नहीं करना चाहिए। (नीति. 18:1) जब बहन नैन्सी का पति उसे छोड़कर चला गया, तो वह टूटकर रह गयी। वह कहती है, “मेरा किसी से मिलने या बात करने का मन नहीं करता था। ऐसा कई दिनों तक रहा। लेकिन जितना ज़्यादा मैं खुद को अकेला रखती थी, उतना ही मैं दुखी रहती थी।” मगर फिर नैन्सी ने उन भाई-बहनों की मदद करने का फैसला किया, जो समस्याओं से जूझ रहे थे। ऐसा करने से नैन्सी को काफी फायदा हुआ। वह बताती है, “जब दूसरे अपनी परेशानी बताते थे, तो मैं ध्यान से सुनती थी। मैंने गौर किया कि दूसरों की परेशानी पर ध्यान देने से मैं अपनी परेशानी भूल जाती हूँ।”

17 मंडली की सभाओं में जाने से भी हमें हिम्मत और ताकत मिलती है। सभाओं में हाज़िर होकर हम यहोवा को और भी मौके देते हैं कि वह हमारा ‘मददगार और दिलासा देनेवाला’ साबित हो। (भज. 86:17) वहाँ वह अपनी पवित्र शक्‍ति, अपने वचन और अपने लोगों के ज़रिए हमें ताकत देता है। सभाओं में हमें मौका मिलता है कि हम “एक-दूसरे का हौसला” बढ़ाएँ। (रोमि. 1:11, 12) सोफिया नाम की एक बहन कहती है, “यहोवा और भाई-बहनों की वजह से मैं मुश्‍किलों का धीरज से सामना कर पायी। मंडली की सभाओं से मुझे सबसे ज़्यादा मदद मिली। मैंने महसूस किया है कि जितना ज़्यादा मैं प्रचार और मंडली में मेहनत करती हूँ, उतना ही मेरे लिए चिंताओं और परेशानियों से निपटना आसान हो जाता है।”

18. अगर हम निराश हो जाते हैं, तो यहोवा हमारी मदद कैसे कर सकता है?

18 जब हम निराश होते हैं, तो आइए याद रखें कि यहोवा भविष्य में तो हमें चिंताओं से छुटकारा देगा ही, वह आज भी इनका सामना करने में हमारी मदद करता है। वह हममें निराशा और नाउम्मीदी की भावनाओं से लड़ने की ‘इच्छा पैदा करता है और ताकत भी देता है।’​—फिलि. 2:13.

19. रोमियों 8:37-39 से हमें क्या भरोसा मिलता है?

19 रोमियों 8:37-39 पढ़िए। प्रेषित पौलुस ने हमें भरोसा दिलाया कि कोई भी बात हमें परमेश्‍वर के प्यार से अलग नहीं कर सकती। लेकिन जो भाई-बहन चिंताओं और परेशानियों से जूझ रहे हैं, उनकी हम किस तरह मदद कर सकते हैं? अगले लेख में समझाया जाएगा कि कैसे हम यहोवा की मिसाल पर चलकर उनके साथ करुणा से पेश आ सकते हैं और उन्हें सहारा दे सकते हैं।

गीत 44 दुखियारे की प्रार्थना

^ पैरा. 5 अगर हम बहुत तनाव में रहें और यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहे, तो इसका असर हमारे दिलो-दिमाग पर हो सकता है और हमारी सेहत भी खराब हो सकती है। ऐसे में यहोवा हमारी मदद कैसे कर सकता है? इस लेख में हम गौर करेंगे कि यहोवा ने तनाव या चिंताओं का सामना करने में एलियाह की मदद कैसे की। बाइबल के दूसरे उदाहरणों से हम सीखेंगे कि जब हम चिंताओं से घिरे होते हैं, तो यहोवा से मदद लेने के लिए हमें क्या करना होगा।

^ पैरा. 2 इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 53 तसवीर के बारे में: यहोवा का स्वर्गदूत प्यार से एलियाह को नींद से जगाता है और उसे रोटी और पानी देता है।

^ पैरा. 55 तसवीर के बारे में: भजनों का एक लेखक, जो शायद आसाप का वंशज है, बाकी लेवियों के साथ खुशी-खुशी भजन लिख रहा है और उन्हें गा रहा है।