खुशी की राह
प्यार
इंसान प्यार के भूखे होते हैं। चाहे पति-पत्नी की बात करें या एक परिवार के लोगों की या दोस्तों की, उनके बीच प्यार न हो तो रिश्ता मज़बूत नहीं हो सकता। इस वजह से यह कहना गलत नहीं होगा कि मन की शांति और खुशी के लिए प्यार ज़रूरी है। लेकिन “प्यार” किसे कहते हैं?
हम यहाँ प्रेमी-प्रेमिका के बीचवाले प्यार की बात नहीं कर रहे हैं, हालाँकि इस प्यार की भी अपनी अहमियत है। यहाँ जिस प्यार की बात की जा रही है, वह प्यार का श्रेष्ठ रूप है। एक इंसान में यह प्यार होने से वह सच्चे दिल से दूसरों का भला करता है, कई बार तो अपनी खुशी भी दाँव पर लगा देता है। यह प्यार उसूलोंवाला प्यार होता है। इस तरह का प्यार दर्शानेवाला व्यक्ति परमेश्वर के उसूलों के हिसाब से प्यार करता है। इसका यह मतलब नहीं कि उसमें भावनाएँ नहीं होतीं। वह उसूलों को मानते हुए भी दिल से प्यार करता है।
प्यार कैसा होता है, इस बारे में शास्त्र में बताया गया है, ‘प्यार सब्र रखता है और कृपा करता है। प्यार जलन नहीं रखता, डींगें नहीं मारता, घमंड से नहीं फूलता, गलत व्यवहार नहीं करता, सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता, भड़क नहीं उठता। यह चोट का हिसाब नहीं रखता। यह बुराई से खुश नहीं होता, बल्कि सच्चाई से खुशी पाता है। यह सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज से सह लेता है। प्यार कभी नहीं मिटता।’—1 कुरिंथियों 13:4-8.
उसूलोंवाला प्यार “कभी नहीं मिटता।” यह दिनों-दिन बढ़ता जाता है। जब एक इंसान को किसी के लिए ऐसा प्यार होता है, तो वह उसके साथ सब्र से पेश आता है, उस पर कृपा करता है और उसकी गलतियाँ माफ कर देता है। यह प्यार “एकता में जोड़नेवाला जोड़ है।” (कुलुस्सियों 3:14) हम इंसानों में बहुत-सी कमियाँ हैं, फिर भी हमारे बीच ऐसा प्यार हो, तो हमारा आपसी रिश्ता अटूट रहता है। हम खुश रहते हैं। इसे समझने के लिए हम शादी के बंधन के बारे में गौर करेंगे।
‘प्यार एकता में जोड़नेवाला जोड़’
यीशु मसीह ने शादी के बंधन के बारे में ऐसी बातें बतायीं, जिनसे हम कुछ अहम सिद्धांत जान पाते हैं। जैसे, उसने कहा था, ‘आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे। इसलिए जिसे परमेश्वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।’ (मत्ती 19:5, 6) इस बात से हम दो अहम सिद्धांत सीख सकते हैं।
‘वे दोनों एक तन हैं।’ इंसानी रिश्तों में सबसे गहरा रिश्ता शादी का बंधन होता है। जिस पति-पत्नी के बीच प्यार होता है, वे किसी पराए के साथ “एक तन” नहीं होते यानी व्यभिचार नहीं करते। प्यार उन्हें बेवफाई करने से रोकता है, उनके रिश्ते को टूटने से बचाता है। (1 कुरिंथियों 6:16; इब्रानियों 13:4) वहीं अगर कोई अपने साथी से बेवफाई करे, तो वह उसका भरोसा तोड़ देता है और इससे उनका आपसी रिश्ता तबाह हो जाता है। अगर उनके बच्चे हैं, तो उन पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। वे ठुकराया हुआ महसूस करते हैं, डरे-सहमे से रहते हैं और कुछ बच्चे तो नफरत से भी भर जाते हैं।
“जिसे परमेश्वर ने एक बंधन में बाँधा है।” शादी का बंधन पवित्र होता है। इस बात को समझनेवाले पति-पत्नी अपने रिश्ते को मज़बूत करने की पूरी कोशिश करते हैं। मुश्किलें आने पर वे एक-दूसरे से अलग होने के बारे में नहीं सोचते। उनका प्यार गहरा होता है और हर मुश्किल झेल लेता है। ऐसा प्यार होने की वजह से वे ‘सबकुछ बरदाश्त कर लेते हैं’ और समस्याओं से निपटने का तरीका ढूँढ़ लेते हैं ताकि वे दोनों एक रहें और उनके बीच शांति रहे।
पति-पत्नी के बीच सच्चा प्यार हो, तो उनके बच्चों पर इसका अच्छा असर होता है। जैसिका नाम की लड़की कहती है, “मेरे मम्मी-पापा एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और उनके दिल में एक-दूसरे के लिए आदर है। मैंने देखा है कि मम्मी पापा का बहुत आदर करती है, खासकर हम बच्चों के सामने। मैं अपनी मम्मी की तरह बनना चाहती हूँ।”
प्यार परमेश्वर का सबसे बड़ा गुण है। शास्त्र में लिखा है, “परमेश्वर प्यार है।” (1 यूहन्ना 4:8) इसी गुण की वजह से यहोवा एक “आनंदित परमेश्वर” है। (1 तीमुथियुस 1:11) अगर हम भी यहोवा के जैसे गुण दर्शाएँ, खासकर प्यार, तो हम भी आनंदित या खुश रहेंगे। शास्त्र में लिखा है, “परमेश्वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलो और प्यार की राह पर चलते रहो।”—इफिसियों 5:1, 2.