अपनों को खोने का गम कैसे सहें?
मन की तड़प
“मेरी पत्नी सोनिया * एक लंबे समय तक बीमारी से जूझती रही, फिर मौत ने उसे मुझसे जुदा कर दिया। ज़िंदगी के 39 साल हमने साथ गुज़ारे थे। सोनिया से बिछड़ने का गम सहने में मेरे दोस्तों ने मेरी बहुत मदद की। मैं भी पूरी कोशिश करता था कि खुद को व्यस्त रखूँ ताकि दुख से उबर पाऊँ। फिर भी करीब एक साल तक मैं सदमे में ही रहा। अचानक उसकी यादों से मेरा दिल तड़प उठता था और खुद को सँभालना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाता था। आज करीब तीन साल बाद भी कभी-कभी वही यादें अचानक मुझे सताने लगती हैं और मैं बेबस हो जाता हूँ।”—अजय।
क्या आपने भी किसी अपने को खोया है? अगर हाँ, तो शायद आप अजय की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकते हैं। ज़िंदगी में शायद ही किसी और बात से इतना दुख होता है, जितना कि अपनों को खोने पर होता है, फिर चाहे वह जीवन-साथी हो या रिश्तेदार या फिर एक जिगरी दोस्त। यहाँ तक कि जानकारों का भी कहना है कि अज़ीज़ों की मौत का दुख ज़िंदगी का सबसे बड़ा दुख है। मनोरोग-विज्ञान पर एक जानी-मानी पत्रिका कहती है कि किसी की मौत का दर्द सहना बरदाश्त से बाहर होता है, क्योंकि एक इंसान कुछ ऐसा खो देता है, जो उसे दोबारा कभी नहीं मिल सकता। इसलिए जब एक इंसान के साथ यह हादसा होता है, तो उसके मन में इस तरह के सवाल आ सकते हैं, ‘क्या मुझे सारी ज़िंदगी इसी तरह घुट-घुटकर जीना होगा? क्या मैं फिर कभी खुश रह पाऊँगा? मैं इस दुख से कैसे उबर सकता हूँ?’
इन्हीं सवालों के जवाब इस पत्रिका में दिए गए हैं। अगले लेख में बताया जाएगा कि अगर आपने कुछ समय पहले किसी अज़ीज़ को खोया है, तो आपको शायद कैसी भावनाओं से जूझना पड़ सकता है। बाद के लेखों में कुछ सुझाव दिए गए हैं, जिन पर अमल करने से आपको दुख से उबरने में कुछ मदद मिलेगी।
हम उम्मीद करते हैं कि जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उन्हें आगे के लेखों से दिलासा मिलेगा और इसमें दिए सुझावों से मदद मिलेगी।
^ पैरा. 3 इन लेखों की शृंखला में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।