न्यायी जो सही बात पर अटल बना रहता है
परमेश्वर के करीब आइए
न्यायी जो सही बात पर अटल बना रहता है
इंसानी न्यायी अकसर गलत फैसला सुनाते हैं, या फिर वे एक गुनहगार को कुछ ज़्यादा ही कड़ी सज़ा देते हैं। मगर यहोवा परमेश्वर ऐसा बिलकुल नहीं है, बल्कि वह “न्याय से प्रेम करता है।” (भजन 37:28, नयी हिन्दी बाइबिल) हालाँकि वह सब्र से काम लेता है, लेकिन वह किसी भी गुनहगार को खुली छूट नहीं देता। इसके बजाय, वह सही बात पर अटल बना रहता है। गौर कीजिए कि उसने झगड़े और विद्रोह के एक मामले को किस तरह हल किया। यह किस्सा बाइबल की किताब, गिनती के 20वें अध्याय में दर्ज़ है।
जब वीराने में इसराएलियों का सफर पूरा होनेवाला था, तब उनके सामने पानी की समस्या आयी। * लोग, मूसा और हारून से झगड़ते हुए यह कहने लगे: “तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्यों ले आए हो, कि हम अपने पशुओं समेत यहां मर जाएं?” (आयत 4) वे बड़बड़ाने लगे कि वीराना ‘बुरा स्थान’ है, जहाँ “अंजीर, वा दाखलता, वा अनार,” कुछ भी नहीं है। ये वही फल हैं, जो इसराएल के जासूस सालों पहले वादा किए गए देश से लाए थे। इसराएलियों ने यह भी शिकायत की कि वहाँ ‘पीने के लिए पानी नहीं है।’ (आयत 5; गिनती 13:23) वे असल में मूसा और हारून के मत्थे यह दोष मढ़ रहे थे कि वीराना उस वादा किए गए देश की तरह फलता-फूलता नहीं है, जहाँ पिछली पीढ़ी के इसराएलियों ने जाने से इनकार कर दिया था।
यहोवा ने उन कुड़कुड़ानेवालों को वीराने में मरने के लिए नहीं छोड़ दिया। बल्कि उसने मूसा को तीन काम करने के लिए कहा: लाठी उठा, लोगों को इकट्ठा कर और फिर “उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी।” (आयत 8) मूसा ने पहली दो बातें तो मानी, लेकिन वह तीसरी बात मानने से चूक गया। यहोवा पर विश्वास रखकर चट्टान से बात करने के बजाय, वह कड़वाहट से भर गया और लोगों से कहा: “सुनो, ए बागियो, क्या हम तुम्हारे लिए इसी चट्टान से पानी निकालें?” (आयत 10, किताब-ए-मुकद्दस; भजन 106:32, 33) इसके बाद, मूसा ने दो बार चट्टान पर लाठी मारी “और उस में से बहुत पानी फूट निकला।”—आयत 11.
मूसा और हारून ने गंभीर पाप किया। परमेश्वर ने उनसे कहा: “तुम दोनों ने . . . मेरा कहना छोड़कर मुझ से बलवा किया है।” (गिनती 20:24) इस मौके पर मूसा और हारून ने लोगों पर बगावत करने का इलज़ाम लगाया, जबकि खुद उन दोनों ने परमेश्वर की आज्ञा तोड़कर बगावत की। परमेश्वर का न्याय साफ था: मूसा और हारून इसराएलियों को वादा किए हुए देश में नहीं ले जाएँगे। क्या यह बहुत कड़ी सज़ा थी? नहीं, क्योंकि इसकी कई वजह थीं।
पहली वजह, परमेश्वर ने मूसा को लोगों से बात करने या उन्हें बागी करार देने की हिदायत नहीं दी थी। दूसरी वजह, मूसा और हारून परमेश्वर की महिमा करने में नाकाम रहे। परमेश्वर ने कहा: ‘तुमने मुझे पवित्र नहीं ठहराया।’ (आयत 12) जब मूसा ने कहा, “क्या हम तुम्हारे लिए इसी चट्टान से पानी निकालें?” तो उसने चमत्कार का सारा श्रेय यहोवा को देने के बजाय खुद को और हारून को दिया। तीसरी वजह, यहोवा ने बगावत की वही सज़ा सुनायी, जो उसने बीते समय में दी थी। जब पिछली पीढ़ी के इसराएलियों ने परमेश्वर से बगावत की, तो उसने उन्हें कनान देश जाने की इजाज़त नहीं दी। और इस मौके पर, उसने मूसा और हारून को भी वही दंड दिया। (गिनती 14:22, 23) चौथी वजह, मूसा और हारून इसराएल के अगुवे थे। और जिसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी दी जाती है, उससे ज़्यादा हिसाब भी लिया जाता है।—लूका 12:48.
तो देखा आपने, यहोवा हमेशा सही बात पर अटल रहता है। वह इंसाफ-पसंद है, इसलिए वह नाइंसाफी कर ही नहीं सकता। सच, ऐसा न्यायी हमारे भरोसे और आदर का हकदार है। (w09 09/01)
[फुटनोट]
^ मिस्र से निकलने के बाद इसराएली, कनान देश में कदम रखने के लिए तैयार थे। यह वही देश था, जिसे देने का वादा परमेश्वर ने अब्राहम से किया था। लेकिन जब इसराएल के दस जासूसों ने उस देश के बारे में गलत ब्यौरा दिया, तो लोग मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे। इसलिए यहोवा ने उन्हें 40 साल तक वीराने में भटकते रहने की सज़ा दी। यह समय, विद्रोही पीढ़ी के सभी लोगों के मिटने के लिए काफी था।