गिनती 13:1-33
13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2 “मैं इसराएलियों को जो कनान देश देनेवाला हूँ, उसकी जासूसी करने तू कुछ आदमियों को वहाँ भेज। इसके लिए तू हर गोत्र में से एक ऐसे आदमी को चुन जो लोगों का प्रधान है।”+
3 मूसा ने यहोवा का आदेश मानकर पारान वीराने+ से कुछ आदमियों को कनान भेजा। ये सभी आदमी इसराएलियों के प्रधान थे।
4 उनके नाम ये हैं: रूबेन गोत्र से जक्कूर का बेटा शम्मू,
5 शिमोन गोत्र से होरी का बेटा शापात,
6 यहूदा गोत्र से यपुन्ने का बेटा कालेब,+
7 इस्साकार गोत्र से यूसुफ का बेटा यिगाल,
8 एप्रैम गोत्र से नून का बेटा होशेआ,+
9 बिन्यामीन गोत्र से रापू का बेटा पलती,
10 जबूलून गोत्र से सोदी का बेटा गद्दीएल,
11 यूसुफ के बेटे+ मनश्शे के गोत्र+ से सूसी का बेटा गद्दी,
12 दान गोत्र से गमल्ली का बेटा अम्मीएल,
13 आशेर गोत्र से मीकाएल का बेटा सतूर,
14 नप्ताली गोत्र से वोप्सी का बेटा नहबी
15 और गाद गोत्र से माकी का बेटा गूएल।
16 ये उन आदमियों के नाम हैं जिन्हें मूसा ने देश की जासूसी करने भेजा था। मूसा ने नून के बेटे होशेआ का नाम यहोशू* रखा।+
17 जब मूसा ने उन आदमियों को कनान देश की जासूसी करने भेजा तो उनसे कहा: “तुम लोग इस रास्ते से नेगेब जाना और उसके बाद पहाड़ी प्रदेश में जाना।+
18 तुम देख आना कि देश कैसा है,+ वहाँ किस तरह के लोग रहते हैं, बहुत ताकतवर हैं या मामूली लोग, वहाँ की आबादी कितनी होगी,
19 देश की हालत कैसी है, अच्छी है या बुरी, वहाँ किलेबंद शहर हैं या खुली बस्तियाँ।
20 तुम यह भी देख आना कि वहाँ की ज़मीन कैसी है, उपजाऊ है या बंजर,+ वहाँ पेड़ हैं या नहीं। तुम लोग हिम्मत जुटाकर+ वहाँ से कुछ फल भी लेते आना।” उस समय पके अंगूरों की पहली फसल का मौसम चल रहा था।+
21 तब वे आदमी रवाना हुए। उन्होंने सिन नाम के वीराने+ से लेकर लेबो-हमात*+ के पास रहोब+ तक पूरे देश की जासूसी की।
22 जब वे ऊपर नेगेब पहुँचे तो वे हेब्रोन+ गए जहाँ अहीमन, शेशै और तल्मै+ नाम के अनाकी लोग+ रहते थे। हेब्रोन, मिस्र के सोअन शहर से सात साल पहले बसाया गया था।
23 जब वे एशकोल घाटी+ पहुँचे, तो वहाँ उन्होंने अंगूर की एक डाली काटी जिसमें अंगूरों का एक बड़ा गुच्छा था। इसे दो आदमियों को एक लंबे डंडे पर उठाकर ले जाना पड़ा। वहाँ से उन्होंने कुछ अनार और अंजीर भी लिए।+
24 उन्होंने उस जगह का नाम एशकोल* घाटी+ रखा, क्योंकि वे इसराएली आदमी वहीं से अंगूरों का गुच्छा काटकर लाए थे।
25 फिर वे आदमी देश की जासूसी करके 40 दिन+ बाद वापस आ गए।
26 वे मूसा, हारून और इसराएलियों की पूरी मंडली के पास लौट आए जो पारान वीराने के कादेश+ में ठहरे हुए थे। उन्होंने लोगों की पूरी मंडली को देश के बारे में खबर दी और वहाँ से लाए हुए फल दिखाए।
27 उन्होंने मूसा को यह खबर दी: “तूने हमें जिस देश की जासूसी करने भेजा था, वहाँ सचमुच दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।+ ये देखो वहाँ के फल।+
28 मगर वहाँ के लोग बहुत ताकतवर हैं। उनके बड़े-बड़े शहर हैं जिनके चारों तरफ मज़बूत किलाबंदी है। हमने वहाँ अनाकी लोगों को भी देखा।+
29 और नेगेब+ में अमालेकी लोग+ रहते हैं और पहाड़ी प्रदेश में हित्ती, यबूसी+ और एमोरी+ बसे हुए हैं और समुंदर किनारे+ और यरदन नदी के पासवाले इलाकों में कनानी रहते हैं।”+
30 फिर कालेब ने उन लोगों को शांत करने की कोशिश की जो मूसा के सामने खड़े थे। कालेब ने उनसे कहा, “हम ज़रूर उस देश पर कब्ज़ा कर लेंगे, हम ज़रूर उसे जीत लेंगे। चलो हम फौरन जाकर उस पर हमला करते हैं।”+
31 मगर जो आदमी कालेब के साथ जासूसी करने गए थे वे कहने लगे, “नहीं, हम वहाँ के लोगों से नहीं लड़ सकते। वे हमसे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं।”+
32 इस तरह ये आदमी उस देश के बारे में लोगों को बुरी-बुरी बातें सुनाते रहे+ और यह कहते रहे, “हम जिस देश की जासूसी करके आए हैं, वह अपने ही लोगों को निगल लेता है और हमने वहाँ जितने लोगों को देखा वे सब बहुत ही लंबे-चौड़े हैं।+
33 हमने वहाँ नफिलीम को भी देखा, हाँ, अनाकियों+ को जो नफिलीम के वंशज हैं। उनके सामने तो हम टिड्डियाँ लग रहे थे और वे भी ज़रूर हमें टिड्डी ही समझते होंगे।”
कई फुटनोट
^ या “यहोशुआ” जिसका मतलब है, “यहोवा उद्धार है।”
^ या “हमात के प्रवेश।”
^ मतलब “अंगूरों का गुच्छा।”