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यूहन्‍ना की पहली चिट्ठी

अध्याय

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सारांश

  • 1

    • जीवन का वचन (1-4)

    • रौशनी में चलना (5-7)

    • पापों को मान लेना ज़रूरी है (8-10)

  • 2

    • यीशु सुलह करानेवाला बलिदान है (1, 2)

    • उसकी आज्ञाएँ मानना (3-11)

      • पुरानी और नयी आज्ञा (7, 8)

    • चिट्ठी लिखने की वजह (12-14)

    • दुनिया से प्यार मत करो (15-17)

    • मसीह के विरोधी के बारे में चेतावनी (18-29)

  • 3

    • हम परमेश्‍वर के बच्चे हैं (1-3)

    • परमेश्‍वर के बच्चे; शैतान के बच्चे (4-12)

      • यीशु, शैतान के कामों को नष्ट कर देगा (8)

    • एक-दूसरे से प्यार करो (13-18)

    • परमेश्‍वर हमारे दिलों से बड़ा है (19-24)

  • 4

    • संदेश को परखो (1-6)

    • परमेश्‍वर को जानो, उससे प्यार करो (7-21)

      • “परमेश्‍वर प्यार है” (8, 16)

      • प्यार में डर नहीं होता (18)

  • 5

    • विश्‍वास से दुनिया पर जीत हासिल (1-12)

      • परमेश्‍वर से प्यार करने का मतलब (3)

    • प्रार्थना की ताकत पर भरोसा (13-17)

    • दुष्ट दुनिया में सँभलकर रहो (18-21)

      • सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में (19)