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शमूएल की पहली किताब

अध्याय

सारांश

  • 1

    • एलकाना और उसकी पत्नियाँ (1-8)

    • एक बेटे के लिए हन्‍ना की प्रार्थना (9-18)

    • शमूएल का जन्म; यहोवा को दिया गया (19-28)

  • 2

    • हन्‍ना की प्रार्थना (1-11)

    • एली के दो बेटों के पाप (12-26)

    • यहोवा ने एली के घराने का न्याय किया (27-36)

  • 3

    • शमूएल भविष्यवक्‍ता ठहराया गया (1-21)

  • 4

    • पलिश्‍तियों ने संदूक ज़ब्त किया (1-11)

    • एली और उसके बेटों की मौत (12-22)

  • 5

    • संदूक पलिश्‍तियों के इलाके में (1-12)

      • दागोन नीचा दिखाया गया (1-5)

      • पलिश्‍तियों पर कहर (6-12)

  • 6

    • पलिश्‍तियों ने संदूक लौटाया (1-21)

  • 7

    • संदूक किरयत-यारीम में (1)

    • शमूएल ने बढ़ावा दिया, ‘सिर्फ यहोवा की सेवा करो’ (2-6)

    • मिसपा में इसराएल की जीत (7-14)

    • शमूएल, इसराएल का न्यायी (15-17)

  • 8

    • इसराएल ने राजा की माँग की (1-9)

    • शमूएल ने लोगों को चेतावनी दी (10-18)

    • यहोवा ने लोगों की गुज़ारिश पूरी की (19-22)

  • 9

    • शमूएल, शाऊल से मिला (1-27)

  • 10

    • शाऊल को राजा ठहराया गया (1-16)

    • उसे लोगों के सामने पेश किया गया (17-27)

  • 11

    • शाऊल ने अम्मोनियों को हराया (1-11)

    • दोबारा ऐलान हुआ, शाऊल राजा है (12-15)

  • 12

    • शमूएल का विदाई भाषण (1-25)

      • “खोखली बातों के पीछे मत भागो” (21)

      • यहोवा अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा (22)

  • 13

    • शाऊल ने एक सेना चुनी (1-4)

    • शाऊल की गुस्ताखी (5-9)

    • शमूएल ने उसे फटकारा (10-14)

    • इसराएल बिना हथियार के (15-23)

  • 14

    • मिकमाश में योनातान की जीत (1-14)

    • इसराएल के दुश्‍मनों की हार (15-23)

    • शाऊल ने उतावली में शपथ खायी (24-46)

      • लोगों ने गोश्‍त के साथ खून खाया (32-34)

    • शाऊल के युद्ध; उसका परिवार (47-52)

  • 15

    • शाऊल ने अगाग को छोड़ दिया (1-9)

    • शमूएल ने उसे फटकारा (10-23)

      • “आज्ञा मानना बलिदान चढ़ाने से कहीं बढ़कर है” (22)

    • शाऊल को ठुकराया गया (24-29)

    • शमूएल ने अगाग को मार डाला (30-35)

  • 16

    • दाविद को अगला राजा ठहराया गया (1-13)

      • “यहोवा दिल देखता है” (7)

    • शाऊल पर पवित्र शक्‍ति ने काम करना छोड़ दिया (14-17)

    • दाविद, शाऊल के लिए सुरमंडल बजाता था (18-23)

  • 17

    • दाविद ने गोलियात को हराया (1-58)

      • गोलियात की चुनौती (8-10)

      • दाविद ने चुनौती स्वीकार की (32-37)

      • वह यहोवा के नाम से लड़ा (45-47)

  • 18

    • दाविद और योनातान की दोस्ती (1-4)

    • दाविद की जीत से शाऊल को जलन (5-9)

    • दाविद को मारने की कोशिश (10-19)

    • दाविद की शादी मीकल से (20-30)

  • 19

    • शाऊल को अब भी दाविद से नफरत (1-13)

    • दाविद भाग गया (14-24)

  • 20

    • योनातान दाविद का वफादार (1-42)

  • 21

    • दाविद ने नज़राने की रोटी खायी (1-9)

    • गत में पागल होने का ढोंग (10-15)

  • 22

    • दाविद अदुल्लाम और मिसपे में (1-5)

    • नोब के याजकों का कत्ल (6-19)

    • अबियातार भाग निकला (20-23)

  • 23

    • दाविद ने कीला शहर बचाया (1-12)

    • शाऊल ने दाविद का पीछा किया (13-15)

    • योनातान ने दाविद की हिम्मत बँधायी (16-18)

    • दाविद बाल-बाल बचा (19-29)

  • 24

    • दाविद ने शाऊल को बख्शा (1-22)

      • उसने यहोवा के अभिषिक्‍त जन का आदर किया (6)

  • 25

    • शमूएल की मौत (1)

    • नाबाल ने दाविद के आदमियों को ठुकराया (2-13)

    • अबीगैल ने बुद्धिमानी से काम लिया (14-35)

      • ‘थैली में रखी कीमती चीज़ों की तरह यहोवा जान की हिफाज़त करेगा’ (29)

    • मूर्ख नाबाल की मौत (36-38)

    • अबीगैल दाविद की पत्नी बनी (39-44)

  • 26

    • दाविद ने फिर से शाऊल को बख्शा (1-25)

      • उसने यहोवा के अभिषिक्‍त जन का आदर किया (11)

  • 27

    • दाविद को सिकलग दिया गया (1-12)

  • 28

    • शाऊल, एन्दोर में मरे हुओं से संपर्क करनेवाली औरत के पास गया (1-25)

  • 29

    • पलिश्‍तियों ने दाविद पर भरोसा नहीं किया (1-11)

  • 30

    • अमालेकियों ने सिकलग लूटा (1-6)

      • दाविद को परमेश्‍वर से हिम्मत मिली (6)

    • उसने अमालेकियों को हराया (7-31)

      • बंदियों को छुड़ाया (18, 19)

      • लूट के बारे में दाविद का नियम (23, 24)

  • 31

    • शाऊल और उसके 3 बेटों की मौत (1-13)