नौजवानों के सवाल
मैं कैसे अपनी भावनाओं पर काबू पाऊँ?
“एक दिन मैं खुशी से सातवें आसमान पर होती हूँ तो दूसरे दिन मायूसी के गड्ढे में आ गिरती हूँ। कल मैं जिन बातों को मामूली समझती थी, आज वही बातें मेरे लिए बड़ी समस्या बन जाती हैं।”—करिसा।
क्या आपकी भावनाओं में भी उतार-चढ़ाव आते हैं, मानो आप गड्ढोंवाली सड़क से जा रहे हों? a अगर हाँ, तो यह लेख पढ़कर आपको काफी मदद मिल सकती है।
ऐसा क्यों होता है
बचपन से नौजवान होने तक के दौर में आपके शरीर में कई बदलाव होते हैं। ऐसे में भावनाओं में उतार-चढ़ाव आना आम है। लेकिन उम्र का यह पड़ाव पार करने के बाद भी ये उतार-चढ़ाव बंद नहीं होते। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि तब भी आपकी भावनाएँ अचानक बदलती रहती हैं।
ऐसे में अगर आप अपनी भावनाओं को लेकर परेशान हैं तो याद रखिए कि ऐसा शरीर में होनेवाले हार्मोन के बदलाव की वजह से होता है। साथ ही, आप पर कई चिंताएँ और डर हावी हो सकता है जो आपकी शारीरिक बढ़ोतरी का ही हिस्सा हैं। लेकिन खुशी की बात है कि आप अपनी भावनाओं को समझ सकते हैं और उन पर काबू पाना सीख सकते हैं।
ज़िंदगी का सच: जवानी में ही अपनी भावनाओं पर काबू पाना सीखना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि जब आप बड़े होंगे तो अलग-अलग हालात में यह हुनर आपके काम आ सकता है।
आप ये तीन कदम उठा सकते हैं
बात कीजिए। बाइबल बताती है, “सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।”—नीतिवचन 17:17.
“एक आँटी हैं जिन्हें हम अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं। उनसे मैं अपने दिल की बात आसानी से कह पाती हूँ। जब मैं उन्हें अपने विचार बताती हूँ तो वे बड़े ध्यान से सुनती हैं। जब मेरे विचार सही होते हैं तो उन्हें मुझे पर नाज़ होता है। लेकिन जब मेरे विचार गलत होते हैं तो वे उन्हें सुधारने की पूरी कोशिश करती हैं।”—योलांडा।
इसे आज़माइए: सिर्फ अपने हमउम्र बच्चों से बात मत कीजिए, क्योंकि हो सकता है कि वे खुद आपके जैसी भावनाओं से गुज़र रहे हों। इसके बजाय अपने माता-पिता या ऐसे किसी बड़े इंसान से बात कीजिए जिस पर आप भरोसा करते हैं।
लिखिए। बाइबल अय्यूब के बारे में बताती है जिसने निराशा के दलदल में धँसे होने की वजह से कहा, ‘मैं मन का गुबार निकाल दूँगा, अपनी सारी कड़वाहट उगल दूँगा।’ (अय्यूब 10:1) किसी को बताने के अलावा आप अपनी भावनाएँ लिख भी सकते हैं।
“मैं हर वक्त अपने पास एक छोटी-सी नोटबुक रखती हूँ। जब कोई बात मुझे परेशान करती है तो मैं उसे लिख लेती हूँ। लिखना मेरे लिए मर्ज़ की बढ़िया दवा की तरह है।”—इलियाना।
इसे आज़माइए: अपने पास एक डायरी रखिए जिसमें आप अपनी भावनाएँ, उनमें होनेवाले उतार-चढ़ाव की वजह और उनसे निपटने के सुझावों के बारे में लिख सकते हैं। इस लेख के साथ जो अभ्यास दिया गया है उससे आपको काफी मदद मिल सकती है।
प्रार्थना कीजिए। बाइबल कहती है, “अपना सारा बोझ यहोवा पर डाल दे, वह तुझे सँभालेगा। वह नेक जन को कभी गिरने नहीं देगा।”—भजन 55:22.
“जब मैं दुखी होती हूँ तो लगातार यहोवा से प्रार्थना करती हूँ। उससे अपने दिल की बात कहने के बाद मैं हमेशा राहत महसूस करती हूँ।”—जैसमिन।
इसे आज़माइए: अपनी चिंताओं के बारे में सोचते रहने के बजाय अपनी ज़िंदगी की ऐसी तीन चीज़ों के बारे में गौर कीजिए जिनके लिए आप एहसानमंद हैं। प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगिए, लेकिन उससे मिलनेवाली आशीषों के लिए शुक्रिया भी कहिए।
a इस लेख में भावनाओं में होनेवाली उथल-पुथल के बारे में चर्चा की गयी है जो आम तौर पर नौजवानों में होती है। अगर आप बायपोलर डिसऑर्डर जैसे किसी मानसिक रोग के शिकार हैं तो आप “मैं निराशा का सामना कैसे करूँ?” लेख पढ़िए।